कोविड-19 गाइड लाइन के तहत वाल्मीकि रंगशाला में हुआ मंचन

लखनऊ। आज से सात-आठ दशक पहले हमारे साधारण गांव-टोले की तस्वीर कैसी थी, कैसी स्थितियों और भावनाओं से वे जूझते और उनके बीच स्वाभिमान से जीते थे, इन सभी का एक मनोरंजक नाट्य प्रस्तुति ‘पंचलाइट’ के रूप में प्रेक्षकों ने आज यहां वाल्मीकि रंगशाला गोमतीनगर में जीवंत साक्षात्कार किया। उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी की ओर से लोकप्रिय साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु की कालजयी कथा रचना पंचलाइट का अनादि सांस्कृतिक शैक्षिक, एवं सामाजिक संस्था के कलाकारों द्वारा यहां रंगशाला में मंचन किया गया। प्रसिद्ध रंगकर्मी रंजीत कपूर के नाट्य रूपांतरण का निर्देशन मुन्नी देवी ने किया था।

मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित पूर्व प्रशासनिक अधिकारी बाबा हरदेव सिंह का स्वागत अकादमी के सचिव तरुण राज ने किया। उन्होंने कहा कि लम्बे अरसे बाद हम प्रेक्षागृह में कोविड-19 की गाइडलाइन के तहत जीवंत प्रस्तुति आमंत्रित सीमित दर्शकों के बीच करा पाए हैं। यह मंचन अकादमी फेसबुक पेज पर नाट्यप्रेमियों के लिए लाइव चल रहा था। पंचलाइट एक बिजली विहीन गांव में पैट्रोमैक्स आने और उसे जलाकर गांव के जीवन में रोशनी व उल्लास के रंग भरने की कहानी है तो ऊंच-नीच के भेद भाव के बीच दो प्रेमियों के मिलन की भी दास्तां है। नायिका मुनरी बाहर से आकर बसे गोधन से प्यार करती है। मुनरी की शादी मरने से पहले उसके पिता ने बचपन में ही बिहारी से तय कर दी थी।

परिवार वाले यही कराना चाहते हैं। इधर बिहारी मुनरी और गोधन को छिपकर मिलने देख पंचायत में मामला उठाता है। पंचायत को गैसबत्ती खरीदने के लिए दस रुपये कम पड़ रहे हैं। पंचायत गोधन के अपराध पर इसी कमी को पूरो करने के इरादे से दस रुपये का जुर्माना लगाते हैं। गोधन मना कर देता है। पंचायत उसे गांव से बाहर कर देती है। रामनवमी के मेले में गांववाले गैसबत्ती खरीदकर लाते हैं। गांव में पूजा-पाठ, भजन कीर्तन होता है। मगर गैस बत्ती जलाना कोई नहीं जानता। दूसरे टोले के आदमी को बुलाने की बात होती है पर सरपंच मना कर देते हैं कि बाहर का आदमी जिंदगी भर हमे बाते सुनाएगा।

तभी मुनरी बताती है कि गोधन गैसबत्ती जलाना जानता है। सब खुश होते हैं पर बिहारी और उसके परिवार वाले गोधन को बुलाने पर नाराजगी जाहिर करते हैं। तब गांव वाले गोधन और मुनरी की सच्ची चाहत की दुहाई देते हैं कि दूसरी जगह ब्याहने से किसी को खुशी नहीं मिलेगी। गोधन को बत्ती जलाने के लिए बुलाने और मुनरी से ब्याहने से गांव और बिरादरी की इज्जत भी रह जायेगी। गोधन आकर बत्ती जला देता है। गांव में प्रेमियों का मिलन होता है और खुशियां छा जाती हैं।

नाटक में गोधन- मो. मुस्तकीम सलमानी, मुनरी- ज्योति सिंह, सरपंच- राधेश्याम, बिहारी- विकास यादव, सूत्रधार-डा.मधुप्रकाश श्रीवास्तव के साथ अन्य भूमिकाओं में विनीता सिंह, दिव्यांश गुप्ता, जयव्रत, अनिल वर्मा, मनाज वर्मा, अंशिका सक्सेना, रामू जायसवाल, माहिनी, नेहा सक्सेना, रामकुमार यादव, कुन्दन यादव व शशांक सिंह ने अभिनय किया। मंच के पीछे के कार्यों में तमाल बोस, राजकिशोर गुप्ता, नीमा गुप्ता, मयंक यादव, रीमा सक्सेना, शोएब अंसारी, प्रीति गोयल, अनूप शुक्ला, अम्बरीश चतुर्वेदी के साथ संगीत पक्ष में अनादि खरे व सांवरे चैन सिंह का सहयोग रहा। प्रस्तुति में विशेषज्ञ के तौर पर तमाल बोस व ज्ञानेश्वर मिश्र ने और भोजपुरी भाषा के संवाद सिखाने में आरती निगम का विशेष योगदान रहा।  

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